चाहतों को ऐसे ही जवां रहने दो
महोब्बतों को यु ही तरसने दो
क्या पता...
किस मोड़ पे मंजिल मिल जाये :)
पर याद रखना...
मंजिल के रस्तों में जो सज़ा है
उसी से ही मंजिल पाने का मज़ा है :) :)
वरना मंजिल क्या है...
अपने आप में एक ठहराव ही तो है
और ठहराव किसे पसंद है...
ना ज़िन्दगी को और
ना ही ज़िन्दगी जीने वालों को :) :) :)