Wednesday, January 18, 2012

...मंजिल...




चाहतों को ऐसे ही जवां रहने दो
महोब्बतों को यु ही तरसने दो
क्या पता...
किस मोड़ पे मंजिल मिल जाये :)

पर याद रखना...
मंजिल के रस्तों  में जो सज़ा है
उसी से ही मंजिल पाने का मज़ा है :) :)

वरना मंजिल क्या है...
अपने आप में एक ठहराव ही तो है
और ठहराव किसे पसंद है...
ना ज़िन्दगी को और
ना ही ज़िन्दगी जीने  वालों को :) :) :)


एक प्यारा सा बदलाव :) दिन बदला, साल बदला बदला हर मौसम भी, फिर भी अपना प्यार न बदला जबकि बदले कुछ तुम भी और कुछ हम भी ये भी एक सच है इ...