Wednesday, January 18, 2012

...मंजिल...




चाहतों को ऐसे ही जवां रहने दो
महोब्बतों को यु ही तरसने दो
क्या पता...
किस मोड़ पे मंजिल मिल जाये :)

पर याद रखना...
मंजिल के रस्तों  में जो सज़ा है
उसी से ही मंजिल पाने का मज़ा है :) :)

वरना मंजिल क्या है...
अपने आप में एक ठहराव ही तो है
और ठहराव किसे पसंद है...
ना ज़िन्दगी को और
ना ही ज़िन्दगी जीने  वालों को :) :) :)


5 comments:

Deepak Doddamani said...

really nice

Sujatha Sathya said...

very nice Shveta

Aditya said...

Bahut hi khoobsoorat rachna..

manzil ek thehraav hi to hai..
behad khoobsoorat nazariya.. :)

kabhi waqt mile to mere blog par bhi aaiyega.. aapka swagat hai..
pallchhin-aditya.blogspot.com

Saru Singhal said...

Beautiful and the smilies are perfect to end those lines...

shvetilak said...

Thank u all for motivating me to write... :)

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